सभी भाइयों और बहनों को मेरा प्रेम भरा नमस्कार !!
आज मैं आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताना चाहता हु , जो सिर्फ मेरी कल्पना का हिस्सा मात्र है । वैसे तो वो चाँद तक जाने के सपने देखता है , मगर उसके प्रयास एक फ़ीट दुरी चलने के भी नहीं है । वो सोचता है कि जैसा भगवान ने उसकी किस्मत में लिखा है , वो उसे वैसा का वैसा बिना किसी मेहनत के आराम से मिल जायेगा । वह अपनी ज़िंदगी बड़े ही निष्क्रिय रूप से जी रहा था ।
उसने अपनी ज़िंदगी में कुछ भी हासिल नहीं किया है । उसका जीवन कुंठा और कष्ट से घिरा हुआ है । मौत के बाद जब वो भगवान के सामने अपने कर्मों का फैसला सुन ने के लिए खड़ा होता है तो उसे पता चलता है कि उसने अपनी ज़िंदगी के साथ क्या किया है । पर वो कहते है न "अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत " बहुत देर हो चुकी थी , अब कुछ भी नहीं बदला जा सकता था ।
उसके पास तो अपनी गलती सुधरने का मौका नहीं था , पर आज के युवा लोगो के सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है । आप सब के पास अपनी ज़िंदगी संवारने का और कामयाब होने का एक सुनहरा मौका है , पर अपनी मूर्खता की वजह से उसको हाथ से जाने मत देना । ज़िंदगी का मज़ा लो , तो ज़िंदगी तुम्हे मज़े देगी । भगवान हर इंसान को एक मौका देता है , अब आपका फैसला है कि आप क्या करना चाहते हो , ज़िंदगी को एक नया और अलग मोड़ देना चाहते हो या जो चल रहा है उसी में खुश रहना चाहते हो ?? ये आप पर निर्भर है ।
अब आपके सामने पेश है मेरी कविता । ध्यान से पढियेगा :-
"चारो तरफ अँधेरा है यहाँ, नज़र कोई आता नहीं ,
खुद में ही खो सा गया हूँ , पास कोई बुलाता नहीं ,
मुश्किलें तो बहुत है मेरी, कोई इन्हे सुलझाता नहीं,
तन्हाई से प्यार सा हुआ, साथ किसी का रास आता नहीं,
छोटी सी चोट से सहम जाता था, अब मौत से भी घबराता नहीं,
ऐसे मोड़ पर खड़ा हूँ मैं , यहाँ से निकलने का अब रास्ता नहीं,
जीने की उम्मीद नहीं दिल में, क्यों कोई मुझे मारता नहीं,
एक दिन उखड गयी मेरी साँसे, जीने में वैसे भी कोई सार था नहीं,
अर्थी को कन्धा भी नसीब न हुआ, कोई मेरा रिश्तेदार था नहीं,
किस से करता साथ की उम्मीद, कोई मेरा यार था नहीं,
ना हो पाया अपने पैरो पर खड़ा, ज़िम्मेदारी का एहसास था नहीं,
जब हुआ ऊपर खुद से सामना, जुबां पे कोई अल्फ़ाज़ था नहीं,
नज़रे झुकाये खड़ा था मैं, सिर उठाने का भी अधिकार था नहीं,
जब होने लगा मेरे कर्मों का फैसला, कोई मेरा पक्षकार था नहीं,
नरक में भेजा गया मुझे, मेरे लिए स्वर्ग का द्वार था नहीं,
कोसता रहा खुद को मैं, क्यों अपने सपनो से प्यार था नहीं,
पुरानी यादे बस यही कहती है, काश! मैं सपनो को मारता नहीं,
आज मैं भी अपने मुकाम पर होता, काश! मैं हिम्मत हारता नहीं,
काश! मैं हिम्मत हारता नहीं,
काश! मैं हिम्मत हारता नहीं ।।
आज मैं आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताना चाहता हु , जो सिर्फ मेरी कल्पना का हिस्सा मात्र है । वैसे तो वो चाँद तक जाने के सपने देखता है , मगर उसके प्रयास एक फ़ीट दुरी चलने के भी नहीं है । वो सोचता है कि जैसा भगवान ने उसकी किस्मत में लिखा है , वो उसे वैसा का वैसा बिना किसी मेहनत के आराम से मिल जायेगा । वह अपनी ज़िंदगी बड़े ही निष्क्रिय रूप से जी रहा था ।
उसने अपनी ज़िंदगी में कुछ भी हासिल नहीं किया है । उसका जीवन कुंठा और कष्ट से घिरा हुआ है । मौत के बाद जब वो भगवान के सामने अपने कर्मों का फैसला सुन ने के लिए खड़ा होता है तो उसे पता चलता है कि उसने अपनी ज़िंदगी के साथ क्या किया है । पर वो कहते है न "अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत " बहुत देर हो चुकी थी , अब कुछ भी नहीं बदला जा सकता था ।
उसके पास तो अपनी गलती सुधरने का मौका नहीं था , पर आज के युवा लोगो के सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है । आप सब के पास अपनी ज़िंदगी संवारने का और कामयाब होने का एक सुनहरा मौका है , पर अपनी मूर्खता की वजह से उसको हाथ से जाने मत देना । ज़िंदगी का मज़ा लो , तो ज़िंदगी तुम्हे मज़े देगी । भगवान हर इंसान को एक मौका देता है , अब आपका फैसला है कि आप क्या करना चाहते हो , ज़िंदगी को एक नया और अलग मोड़ देना चाहते हो या जो चल रहा है उसी में खुश रहना चाहते हो ?? ये आप पर निर्भर है ।
निराश आदमी |
"चारो तरफ अँधेरा है यहाँ, नज़र कोई आता नहीं ,
खुद में ही खो सा गया हूँ , पास कोई बुलाता नहीं ,
मुश्किलें तो बहुत है मेरी, कोई इन्हे सुलझाता नहीं,
तन्हाई से प्यार सा हुआ, साथ किसी का रास आता नहीं,
छोटी सी चोट से सहम जाता था, अब मौत से भी घबराता नहीं,
ऐसे मोड़ पर खड़ा हूँ मैं , यहाँ से निकलने का अब रास्ता नहीं,
जीने की उम्मीद नहीं दिल में, क्यों कोई मुझे मारता नहीं,
एक दिन उखड गयी मेरी साँसे, जीने में वैसे भी कोई सार था नहीं,
अर्थी को कन्धा भी नसीब न हुआ, कोई मेरा रिश्तेदार था नहीं,
किस से करता साथ की उम्मीद, कोई मेरा यार था नहीं,
ना हो पाया अपने पैरो पर खड़ा, ज़िम्मेदारी का एहसास था नहीं,
जब हुआ ऊपर खुद से सामना, जुबां पे कोई अल्फ़ाज़ था नहीं,
नज़रे झुकाये खड़ा था मैं, सिर उठाने का भी अधिकार था नहीं,
जब होने लगा मेरे कर्मों का फैसला, कोई मेरा पक्षकार था नहीं,
नरक में भेजा गया मुझे, मेरे लिए स्वर्ग का द्वार था नहीं,
कोसता रहा खुद को मैं, क्यों अपने सपनो से प्यार था नहीं,
पुरानी यादे बस यही कहती है, काश! मैं सपनो को मारता नहीं,
आज मैं भी अपने मुकाम पर होता, काश! मैं हिम्मत हारता नहीं,
काश! मैं हिम्मत हारता नहीं,
काश! मैं हिम्मत हारता नहीं ।।
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PIYUSH VIJAYVARGIYA
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