Monday, 23 March 2015

अंतर्जातीय विवाह : समाज के विकास में बेड़िया

सर्वप्रथम बड़ों को मेरा नमस्कार और छोटों को ढेर सारा प्यार 
वैसे मुझे लिखने का शौक  तो बचपन से था , कभी कविता लिखी तो कभी कोई लेख लिखा पर आज जब अपने ही समाज में फ़ैल रही कुरीतियों और पुरानी बेबुनियाद परम्पराओं  पर नजर पड़ती है तो दिल से एक आह सी निकलती है जब छोटा था तब ही सोच लिया था कि  इन सबके विरोध में कभी कभी लेख जरूर लिखूंगा, पर छोटी उम्र होने के कारण  ऐसे मुद्दो पर बोलना सही नहीं लगा पर चूँकि अब वयस्क हो चूका हूँ , अच्छे बुरे की समझ गयी है तो आप सभी का ध्यान इस और केंद्रित करना चाहूँगा वैसे तो समाज में बहुत सी कुरीतिया पनप रही है जैसे - अनमेल विवाह , पर्दा प्रथा , पल्ला लेना , मृत्यु भोज , अंतर्जातीय विवाह आदि एक एक करके सभी पर अपने विचार रखूँगा, पर आज का मुद्दा अंतर्जातीय विवाह (intercaste marriage) है  
शादी की नीव क्या है ?? शादी करने के लिए क्या जरुरी है ?? क्या शादी सिर्फ समाज में ही हो सकती है ?? ऐसे कई सवाल है जो मेरे मन में उठ रहे थे और उत्सुकतावश मैंने इनका जवाब भी ढूंढा है। 
विवाह सिर्फ दो दिलो का मिलन  है, जो दोनों परिवारों की उपस्थिति में मिले तो बात ही कुछ और होती है पुराने ज़माने की बात करु  तो उस समय शिक्षा का इतना विस्तार नहीं था , अपने ही गावं में रह कर कोई भी शिक्षा प्राप्त कर सकता था पर जैसे जैसे समय बदला , शिक्षा की सीमाओं  में भी विस्तार हो गया उच्च शिक्षा के लिए गावं से बाहर जाना पड़ा अब कुँए का मेंढक कुँए से बाहर निकलेगा तो निःसंदेह दूसरी प्रजाति के जीव जंतु से भी मुलाकात होगी इतने लोग संपर्क में आते है , पता नहीं कब किसका व्यवहार पसंद जाये , कब किस से दिल मिल जाये?? वो कहते है प्यार अँधा होता है , प्यार के सामने जात पात की दीवार बहुत छोटी नज़र आती है अब दिल कोई कम्प्यूटर से चलने वाला सॉफ्टवेयर तो है नहीं , जो दूसरे समाज की शर्त पूरी होते ही अपना सिस्टम बंद कर लेगा  
ऐसा नहीं है कि मैं अंतर्जातीय विवाह से  पूरी तरह से सहमत हूँ ये सब उस जगह आकर गलत साबित हो जाता है जब लड़का / लड़की बिना सोचे समझे अपना जीवन उस इंसान  के साथ सोच लेते है जो खुद को भी अच्छी तरह से नहीं पाल सकता है, जिसका जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं है या वो समाज में अपने बराबर बैठने लायक हो  अब सिर्फ प्यार से तो पेट नहीं भरता है ना। फिर ऐसे गलत फैसलों से ज़िंदगी बर्बाद कर लेते है मैं ये नहीं कहता कि कोई टाटा या अम्बानी होना चाहिए, पर इतना कमाने वाला तो होना ही चाहिए कि अपने परिवार की सारी  जरुरतो को पूरा कर सके अगर जीवन साथी की आर्थिक स्थिति अच्छी है तो मेरी नज़र में अंतर्जातीय विवाह में कोई बुराई नहीं है कई हालात ऐसे भी देखे है मैंने कि लड़का / लड़की माँ बाप के डर  के कारण अपने प्यार के बारे में बता नहीं सकते है और फिर मजबूरन उन्हें भाग कर शादी करने जैसा घिनौना कृत्य करना पड़ता है इस तरह भाग कर शादी करना मेरी नज़र में तो मूर्खता है , पर उन माता पिता से मेरा एक सवाल है क्या उन्हें ये कदम उठाने पर आपने मजबूर नहीं किया है ? अपने बच्चों के साथ इतना मित्रवत व्यवहार तो होना चाहिए की वो अपने दिल की बात बिना किसी झिझक के आपके साथ साँझा कर सके जब औलाद को अपने माँ बाप से ही सहयोग नहीं मिलता है तो दुनिया कहा से हाथ बढ़ाएगी माता पिता की भी ये ज़िम्मेदारी बनती है कि अगर बच्चे किसी और समाज में जीवन साथी ढूंढ भी लेते है तो एक बार उसकी जांच भी कर ले, अगर सब कुछ सही होता है तो  कोई समस्या ही नहीं है समाज से कही ज़्यादा महत्वपूर्ण अपने बच्चों  की ख़ुशी को समझना चाहिए बच्चो से भी मेरा ये निवेदन है कि भागने से पहले एक बार अपने माँ बाप से तो इस बारे में बात कर ही ले , उन्हें समझने की कोशिश करे , अपनी बात समझाने की कोशिश करे जब दोनों तरफ से बराबर सहयोग मिलने लगेगा तो समस्या ही खत्म हो जाएगी पर इसके लिए किसी किसी को तो पहल करनी पड़ेगी , समाज की दीवार को तोडना पड़ेगा  
ईश्वर ने तो कोई धर्म बनाया है और ही कोई जात पात उसने सिर्फ इंसान बनाया है और उस इंसान में भेदभाव की गंध डाली है हमने पहले धर्म के नाम पर तो झगड़े होते ही थे , हिन्दू मुसलमान का बैर तो कब से चला रहा है परन्तु अब हिन्दू में भी जात  पात के नाम पर ये फासले मत बनाओ एक प्रगतिशील समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब समाज वाले दूसरे समाज को भी उतनी ही इज़्ज़त दे
अंत में समाज के सभी वरिष्ठ और उच्च पद पर विराजमान लोगो से मेरा निवेदन है कि इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है जातिवाद से थोड़ा ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है बदलाव जरूर आएगा , पर उसके लिए ये जरुरी है कि पहले हम खुद को और अपनी सोच को बदले  
धन्यवाद